सिद्धांत तिवारी
ये मामला आईआईएमसी के हिंदी पत्रकारिता विभाग का है, जिस में एक छात्र ने लिखित परीक्षा दी थी. लिखित परीक्षा में उसका नाम नहीं आता है और वो इस बात को लेकर गंभीर हो जाता है क्योंकि उसे अपने दिए हुए पेपर पर पूरा विश्वास था, जिस कारण वो रिजल्ट आने के तीन दिन बाद 20 जून को आरटीआई डाल देता है, जिस में वो पूछता है कि मेरे लिखित परीक्षा की मुझे कॉपी दिखाई जाये. अब यहाँ पर परिस्थिति करवट बदलती है.
ये मामला आईआईएमसी के हिंदी पत्रकारिता विभाग का है, जिस में एक छात्र ने लिखित परीक्षा दी थी. लिखित परीक्षा में उसका नाम नहीं आता है और वो इस बात को लेकर गंभीर हो जाता है क्योंकि उसे अपने दिए हुए पेपर पर पूरा विश्वास था, जिस कारण वो रिजल्ट आने के तीन दिन बाद 20 जून को आरटीआई डाल देता है, जिस में वो पूछता है कि मेरे लिखित परीक्षा की मुझे कॉपी दिखाई जाये. अब यहाँ पर परिस्थिति करवट बदलती है.
ठीक एक महीने बाद यानी की 19 जुलाई को उसके पास आईआईएमसी से फोन जाता है और वो कहते हैं कि भइया तुम्हारा नाम लिस्ट में था, हमसे उसे नेट में चढ़ाने में गलती हो गयी और आप ऐसा करें कल इंटरव्यू के लिए आ जाएं. उसे इंटरव्यू के लिए तब बुलाया जाता है जब दाखिले की सारी प्रक्रिया पूरी हो जाती है और ऐसा इसलिए होता है क्योंकि गलती आईआईएमसी वालों ने की थी.
वो तो शुक्र था कि लड़का जिम्मेदार और समझदार था इसलिए उसने फ्रस्ट्रेशन में आकर कोई गलत कदम नहीं उठाया. इसके आगे का मामला सुनिए जब वो इंटरव्यू के लिए जाता है तो उसे समझाया जाता है कि छात्रों की कॉपी को जाँचने में जिस कंपनी की मदद ली गयी थी उसने गलती की थी और उसे ब्लैक लिस्ट कर दिया गया है. इसके बाद उसका इंटरव्यू होता है जिस में पैनल में तीन लोग होते हैं. इंटरव्यू में उसके बारे में पूछा जाता है. फिर ये पूछा जाता है कि कहां कहां इंटर्नशिप की है, वो डीयू कम्यूनिटी रेडियो बताता है फिर उससे रेडियो के बारे में पूछा जाता है.
ध्यान रहे वो हिंदी पत्रकारिता के लिए इंटरव्यू दे रहा होता है फिर भी रेडियो की बात की जाती है. इसके बाद अन्ना की मुहिम से जुड़े सवाल पूछे जाते हैं. फिर अंत में कहा जाता है कि आप आरटीआई भी डालना जानते है. फिर उसको कहा जाता है कि अब आप जा सकते हैं. वो इंटरव्यू रूम से बाहर आ जाता है और थोड़ी देर के लिए कैंटीन में वक्त बिताने के लिए चला जाता है. फिर पूछता है कि सर क्या हुआ मेरे इंटरव्यू का. सर उसे उसके इंटरव्यू के मार्क्स दिखाते हुए कहते हैं कि ये देखो तुम्हें 15 में से 10 नंबर मिले हैं और लिखित परीक्षा में तुम्हारे 85 में से 63 नंबर है. ऐसा करो तुम 28000 रुपये लेकर आ जाना तुम्हारा दाखिला हो गया है.
वो खुशी खुशी घर आता है और 22 जुलाई को फीस जमा करा देता है और उसका दाखिला हो जाता है. उसे इंटरव्यू के नंबर उसी दिन बता दिए जाते हैं जिस दिन उसका इंटरव्यू होता है. उस छात्र के साथ इंटरव्यू के नाम पर सिर्फ औपचारिकताएं की गयीं, जबकि अन्य प्रतिभाशाली छात्रों के साथ भारत के भौगौलिक स्थिति के बारे में पूछा गया. उस दौरान ऐसा लग रहा था कि उन्होंने पहले से ही सिलेक्शन कर लिया हो. मामले की गंभीरता को देखते हुए मार्ग दिखाएँ इस दिशा में रोकथाम की पहल कैसे की जा सकती है. मित्रों ज्ञात रहे की इस पुरे प्रकरण के साक्ष्य और दस्तावेज़ मेरे पास मौजूद हैं, जिस में उस छात्र से की गयी बातचीत की रिकॉर्डिंग भी शामिल है. इसके अलावा आप अपने सुझाव भेज कर मेरा मार्गदर्शन करें.
1 comment:
अविश्वशनीय किन्तु सत्य
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